Friday, April 5, 2013

महान अभिनेता, महान व्यक्तित्व : ग्रेगरी पेक

हॉलीवुड के सफलतम और ख्यातिप्राप्त अभिनेताओं में से एक ग्रेगरी पेक का जन्म अप्रैल 5, 1916 को हुआ था. उन्होंने टिकट खिड़की पर सफलता अर्जित करने वाली अनेक फिल्में दी जिनमे से कुछ के नाम हैं - स्पेलबाउंड (1945), द पैराडाइन केस (1947), गनफाइटर (1950), रोमन हॉलिडे (1953), मोबी डिक (1956), ऑन द बीच (1959), गन्स ऑफ़ नैवेरोन (1961) आदि. पर वे सिर्फ एक सुपरस्टार ही नहीं एक मंझे हुए अभिनेता भी थे, जिसका सबूत है उनका पाँच बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकन. द कीज़ ऑफ़ द किंगडम (1944), द ईयरलिंग (1946), द जेंटलमैन्स एग्रीमेंट (1947) और ट्वेल्व ओ'क्लॉक हाई (1949) नामक फिल्मों के लिए नामांकित होने और चार बार पुरस्कार जीतते जीतते रह जाने के पश्चात टू किल ए मॉकिंगबर्ड (1962) में अपने रोल के लिए उन्हें अंततः सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अकादमी पुरस्कार मिल ही गया.


टू किल ए मॉकिंगबर्ड (1962) फिल्म में दो बच्चों के विधुर पिता और एक अश्वेत आरोपी को (जिस पर झूठा आरोप लगाया गया था) न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करते श्वेत अटॉर्नी एटिकस फिंच की जटिल भूमिका निभाने के लिए ग्रेगरी पेक को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर पुरस्कार मिला था. ये फिल्म हार्पर ली की इसी नाम (टू किल ए मॉकिंगबर्ड ) पर लिखे गए उपन्यास पर आधारित है और तीन श्रेणियों में ऑस्कर पुरस्कार विजेता है. इस बेहतरीन फिल्म पर चर्चा फिर कभी.

बेल्जियम में जन्मी ब्रिटिश अभिनेत्री ऑड्री हेपबर्न ने जब हॉलीवुड में कदम रखा तो उन्हें कोई नहीं जानता था. और पहली फिल्म में ही उनके सामने थे सुपरस्टार ग्रेगरी पेक. पर ग्रेगरी पेक ने ऑड्री हेपबर्न को अपने ऊंचे कद का रौब में न आने और सहज रहने में स्वयं मदद की. यही नहीं, वे सबको ऑड्री हेपबर्न का परिचय इस तरह देते थे कि मेरी इस नयी फिल्म में मेरा काम तो बस ऐसे ही है, लेकिन हेपबर्न का काम इतना अच्छा है कि अगले साल का ऑस्कर उसे ही मिलेगा. और उनकी भविष्यवाणी बिलकुल सच साबित हुई. यहीं नींव पडी इन दो महान कलाकारों के बीच जीवन-पर्यन्त कायम रहने वाली मित्रता की. तब तक कई सफल फिल्में दे चुके ग्रेगरी पेक ऑस्कर के लिए चार बार नामांकित हो चुके थे, और कैसा संयोग बना कि अपनी पहली फिल्म में अभिनय के लिए ऑड्री हेपबर्न को ऑस्कर मिल गया. फिल्म का नाम था रोमन हॉलिडे (1953) जो अपने समय की बेहतरीन फिल्म मानी जाती है.

ग्रेगरी पेक की सहृदयता की एक और मिसाल है . जब 1954 में फिल्मफेयर पुरस्कार शुरू हुए (जिसका तब नाम था क्लेयर पुरस्कार), तो प्रथम पुरस्कार वितरण समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में ग्रेगरी पेक को बुलाया गया था, पर प्लेन लेट होने के कारण वे समारोह में नहीं पहुँच सके. भारत की पहली मलिका - - तरन्नुम और स्टार रह चुकी सुरैया उनकी बहुत बड़ी फैन थीं और किसी पत्रिका को दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने अपनी सबसे बड़ी इच्छा ग्रेगरी पेक से मुलाक़ात करने की बतायी थी. कहते हैं शायद श्रीलंका (तब सीलोन) में किसी फिल्म की शूटिंग के दौरान ग्रेगरी पेक ने वो इंटरव्यू पढ़ा था, और मुंबई में बिताये चंद घंटों में से भी कुछ समय निकालकर ख़ास सुरैया से मुलाक़ात करने गए थे.


जैसा कि ऊपर बताया, ग्रेगरी पेक और ऑड्री हेपबर्न की मित्रता जीवन - पर्यन्त चलती रही. 1992 में ऑड्री हेपबर्न की मृत्यु पर उन्होंने गुरुदेब रबीन्द्रनाथ टैगोर की "अनएंडिंग लव" कविता सुनायी थी -

I seem to have loved you in numberless forms, numberless times
In life after life, in age after age, forever.
My spellbound heart has made and remade the necklace of songs,
That you take as a gift, wear round your neck in your many forms,
In life after life, in age after age, forever.

स्वयं ग्रेगरी पेक जून 12, 2003 को मृत्यु को प्राप्त हुए .

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