Thursday, July 4, 2013

मन्यम वीरुडू: हीरो ऑफ़ द जंगल

मन्यम वीरुडू यानी हीरो ऑफ़ द जंगल

आन्ध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले के पंडरंगी गाँव में 4 जुलाई, 1897 को  जन्में अल्लूरी सीताराम राजू एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके बारे में बहुत कम पढने सुनने को मिलता है. मास्टरदा के चटगांव शस्त्रागार लूट से भी पहले, भगत सिंह के सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने से भी पहले, आजाद के साथ मिलकर सांडर्स को लालाजी पर प्रहार की सजा देने से भी पहले,  बिस्मिल - अशफ़ाक के काकोरी काण्ड से भी पहले, सुदूर दक्षिण में अशिक्षित आदिवासियों को संगठित कर अंग्रेजों को नाकों चने चबवाने वाले क्रांतिकारी थे - अल्लूरी सीताराम राजू .

चौरी चौरा काण्ड के बाद महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन वापस ले लेने के कारण पूरे देश में नैराश्य प्रसरित था. ऐसे में अल्लूरी सीताराम राजू ने पूर्वी गोदावरी और विशाखापत्तनम जिले के आदिवासियों को संगठित कर "रम्पा पितूरी" या "रम्पा विप्लव" का बिगुल फूंका. अगस्त 1922 से शुरुआत कर गोरिल्ला युद्ध कला के उपयोग से चिंतापल्ली, कृष्णादेवीपेटा और राजावोमंगी समेत कई पुलिस स्टेशनों पर धावा बोलकर हथियार कब्जा लिए गए. राजू के नेत्रित्व में आदिवासी जंगलों से आते थे और पुलिस स्टेशन लूटकर पुनः जंगलों में ही गुम हो जाते थे.  एक अन्य क्रांतिकारी बीरैया डोरा जिन्हें अंग्रेजों ने बंदी बना रखा था, को बकायदा चुनौती देकर कि "मैं बीरैया को रिहा करवाकर रहूंगा। दम हो तो रोक लेना", दिन - दहाड़े छुड़ा लिया गया.

पुलिस से कई मुठभेड़ें हुई, पर हर बार पुलिस दस्तों को मुँह की खानी पड़ी. हार मानकर अंग्रेजों ने ब्रिटिश सेना को इस क्षेत्र में भेजा, पर राजू का छापामार युद्ध जारी रहा. आखिरकार लम्बे संघर्ष के बाद 7 मार्च, 1924 को  चिंतापल्ली के जंगलों में घायल राजू पकड़ लिए गए और उन्हें एक पेड़ से बांधकर गोलियों से छलनी कर दिया गया.

जब गोली से घायल राजू को पकड़ा गया तब उन्होंने खुद ही बताया कि वे अल्लूरी सीताराम राजू हैं, जीवित राजू की कोई तस्वीर पुलिस रिकार्ड्स में नहीं थी, उनकी एकमात्र तस्वीर जो अभिलेखागार में मिलती है वो उनके गोलियों से बिंधे मृत शरीर की ही मिलती है.

हालांकि आज भी गोदावरी पार रम्पा क्षेत्र में कोई आदमी विश्वास नहीं करता कि "मन्यम वीरुडू" कभी पक़डा गया था,

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