Monday, October 14, 2013

Déjà vu


1987 की गर्मियां ख़त्म होने को थीं, एम सी सी के खिलाफ विश्व एकादश की ओर से खेलते हुए एक पांच दिवसीय मैच में 188 रनों की पारी खेलकर आखिरकार सुनील "सनी” गावस्कर ने क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स में भी शतक जड़ ही दिया. और इसके तुरंत पश्चात सुनील गावस्कर ने संन्यास की घोषणा कर दी, यह कहकर कि उसी वर्ष अक्टूबर - नवम्बर में भारत की सरजमीं पर होने वाला रिलायंस वर्ल्ड कप उनका आखिरी टूर्नामेंट होगा. पूरा क्रिकेट जगत सकते में आ गया.

गावस्कर के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण से पहले भारतीय क्रिकेट विश्व क्रिकेट जगत में "आल्सो एक्जिस्ट” की श्रेणी में आता था, पर भारतीय टीम क्रिकेट में जीत भी सकती है, यह अहसास दुनिया को गावस्कर के पदार्पण के बाद हीं हुआ. 1971 में वेस्ट इंडीज के तेज गेंदबाजों के खिलाफ उन्हीं के मैदानों पर चार टेस्ट में 774 रन बनाकर धमाकेदार शुरुआत करने वाले इस ओरिजिनल "लिटिल मास्टर” ने अपने पहले 20 शतक सिर्फ 50 टेस्ट में हीं लगा लिये थे (पहले 50 टेस्ट में इससे बेहतर आज तक सर डॉन ब्रैडमैन ही कर सके हैं) . आखिरकार एक समय असंभव से लगने वाले 29 टेस्ट शतकों के सर डॉन ब्रैडमैन के रिकॉर्ड को भी सनी ने हीं ध्वस्त किया. सनी के टेस्ट मैचों में 10,000 रनों का आंकड़ा स्पर्श करने वाले पहले इंसान बनने की तुलना क्रिकेट जगत में तब आर्मस्ट्रांग के चाँद पर कदम रखने से की गई थी.

गावस्कर के आगमन से पूर्व किसी भारतीय क्रिकेटर ने 15 शतक भी नहीं लगाए थे, और न हीं किसी भारतीय ने 5000 रन बनाए थे. गावस्कर ने इन आंकड़ों में दोगुने से ज्यादा का सुधार किया. विश्व के श्रेष्ठ गेंदबाजों से सुसज्जित अपने समय के श्रेष्ठ टीमों - वेस्ट इंडीज (29 टेस्ट - 13 शतक) और ऑस्ट्रेलिया (20 टेस्ट - 8 शतक) के खिलाफ गावस्कर का खेल अपने चरम पर होता था और इसी वजह से उन्होंने अपनी बैटिंग का लोहा सबसे मनवाया. तब विश्व के सबसे तेज गेंदबाज रहे जेफ़ थामसन एक बार गावस्कर के तकनीकी के सामने इस कदर हतोत्साहित हो गए थे कि गेंदबाजी करने से मना कर दिया था. ऐसी कितनी हीं किम्वदंतियां जुड़ी हैं गावस्कर के क्रिकेटीय जीवन से.

ऐसे क्रिकेटर ने जब क्रिकेट को अलविदा कहा तो लगा जैसे क्रिकेट देखने में मजा ही नहीं रहा, जैसे क्रिकेट अपनी सारी चमक खो बैठा. तमाम रिकार्ड्स और आंकड़ों से परे, गावस्कर की बैटिंग में जो सौन्दर्य दीखता था, वो अब कभी नहीं नजर आयेगा. लगा जैसे क्रिकेट देखने की वजह हीं ख़त्म हो गयी. पर कितने गलत थे सब.

गावस्कर के संन्यास लेने के करीब चार महीने बाद जब दो स्कूली क्रिकेटर्स के 664 रनों के विश्व रिकॉर्ड और तिहारे शतकों के बारे में पहली बार पढ़ा गया तो एक नयी उम्मीद सी जगी (तब तो किसी गावस्कर के 236 का स्कोर हीं बहुत बड़ा लगता था). उसी वक़्त से उन स्कूली क्रिकेटर्स से जुड़ी हर न्यूज़ अपडेट फॉलो करने लगा. पर वो किस्सा फिर कभी.

1987 के उस प्रसिद्ध लॉर्ड्स मैच (जो उनका आखिरी प्रथम श्रेणी मैच था) के लिये जब सुनील गावस्कर फ्लाइट पकड़ने अपने पुराने मित्र और बम्बई क्रिकेट के अधिकारी (हाल ही में दिवंगत हुए) हेमंत वैंगनकर के साथ जा रहे थे तो उन्होंने सनी को उस उभरते स्कूली क्रिकेटर के बारे में बताया जो गाइल्स शील्ड और हैरिस शील्ड जैसी स्कूली क्रिकेट प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन करने के बाद भी उस साल के सर्वश्रेष्ठ स्कूली क्रिकेटर के पुरस्कार से वंचित रह गया था. गावस्कर ने कार की बोनट पर हीं कागज़ रख कर उस स्कूली क्रिकेटर को पत्र लिखा - “बहुत साल पहले एक और लड़के को सर्वश्रेष्ठ स्कूली क्रिकेटर का पुरस्कार नहीं दिया गया था. और उस लड़के ने बाद में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कुछ ख़ास बुरा नहीं किया”. गावस्कर इस पत्र में स्वयं का जिक्र कर रहे थे.

कुछ समय बाद गावस्कर ने उसी स्कूली क्रिकेटर को अपने पैड गिफ्ट किये. इतना ही नहीं, रिलायंस वर्ल्ड कप में ज़िम्बाब्वे के खिलाफ हो रहे एक ग्रुप मैच में उस स्कूली क्रिकेटर को भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम में बुलाकर साथी खिलाड़ियों से मिलवाया.

उस स्कूली क्रिकेटर ने बाद में चलकर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में ऐसी चमक बिखेरी कि सभी नए पुराने सितारों की चमक मद्धम पड़ गयी. उसके आगमन से पूर्व एक दिवसीय क्रिकेट में किसी भारतीय क्रिकेटर ने पांच शतक से ज्यादा नहीं लगाए थे, तीन हजार रन बनाने वाले इक्का दुक्का थे, और विश्व स्तर की बात करें तो डेस्मंड हेंस के 17 शतक और आठ हजार रन, न छुए जा सकने वाले रिकॉर्ड लगते थे. आज इन सारे रिकार्ड्स को इतना ज्यादा पीछे छोड़ा जा चुका है उस स्कूली क्रिकेटर द्वारा कि वे रिकार्ड्स बौने लगते हैं. टेस्ट क्रिकेट में भी तकरीबन हर रिकॉर्ड में उसी स्कूली क्रिकेटर द्वारा सुधार किया जा चुका है. ये बात दीगर है कि उस स्कूली क्रिकेटर और उसकी पीढ़ी के अन्य क्रिकेटर्स - "फैब फोर" – सचिन, द्रविड़, गांगुली, लक्ष्मण - सभी को बचपन से क्रिकेटर बनने का सपना गावस्कर को खेलते देखकर हीं मिला था.

आज जब उस स्कूली क्रिकेटर ने संन्यास की घोषणा कर दी है तो एक बार फिर से शून्यता का शिद्दत से अहसास हो रहा है.....और ये शून्यता लम्बे समय तक अपना अहसास कराती रहेगी. पिछले 24 वर्षों से एक अरब लोगों के लिये सचिन क्रिकेट का पर्याय रहे हैं. सचिन को खेलता देख कितने हीं सहवाग, युवराज, कोहली सरीखे क्रिकेट खेलना सीखे, उन सभी के लिये निस्संदेह ये एक युग का अवसान है.

एक बार एक ऐड फिल्म के लिये सचिन से ऐड गुरु प्रहलाद कक्कड़ ने फ्लाई स्वैटर से क्रिकेट बॉल हिट करने के लिये कहा तो सचिन ने साफ़ इनकार करते हुए कहा था, “ऐसा करने से लगेगा मैं क्रिकेट से बड़ा हूं, क्रिकेट की वजह से मैं हूं, मेरी वजह से क्रिकेट नहीं”. निस्संदेह सचिन ने क्रिकेट को पुनःपरिभाषित किया है पर हमें नहीं भूलना चाहिये, क्रिकेट ने सचिन दिया है. संन्यास की घोषणा के वक़्त सचिन के शब्द थे - “पिछले 24 सालों से मैं एक सपने को हर रोज जी रहा हूं - भारत के लिये खेलने का सपना” - एक सपना जो सुनील गावस्कर को देश के लिये खेलते देख जन्मा था और जिसे सचिन को दो बार और अभी जीना है, उसके बाद अगली पीढ़ी को यही सपना सौंपना है. गावस्कर की ही तरह तेंदुलकर ने भी अपने ग्लव्स एक उभरते स्कूली क्रिकेटर को भेंट किये हैं. कौन जानता है, क्रिकेट स्वयं को एक बार पुनः परिभाषित किये जाने के लिये किसी विजय ज़ोल, किसी सरफ़राज़ खान या किसी अरमान ज़फर को तैयार कर रहा हो.

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