
ये एक ऐसी इनिंग थी जिसकी दूसरी मिसाल इतने कम उम्र के खिलाड़ी की मिलनी मुश्किल है. जिस किसी ने वो इनिंग देखी होगी, उसे शर्तिया यही लगा होगा जो मुझे तब लगा था - भारतीय क्रिकेट को एक 'माइकल बेवेन' मिलने वाला है.
दो माह बाद उसी युवक ने रणजी ट्रॉफी के एक मैच में पहली इनिंग में दोहरा शतक और दूसरी में 159 रनों की अविजित इनिंग खेली. अब तो क्रिकेट पंडितों की उम्मीदें आसमान छूने लगीं.
पर भविष्य किसने देखा है, भारतीय टीम में नो वैकेंसी (फैब फोर + सहवाग का ज़माना था) और उस खिलाड़ी के एक आध असफल घरेलू सीजन, भारतीय - ए टीम के दौरों का अभाव, इन सब वजूहातों से उसका गेम भी प्रभावित हुआ, और प्रतिबंधित इंडियन क्रिकेट लीग ज्वाइन करना सबसे बड़ी भूल साबित हुई.
आज वही क्रिकेटर भारतीय टीम में अपनी एक नई शुरुआत कर रहा है, तो निस्संदेह उसे पिछले दस सालों में जो वो नहीं हासिल कर पाया, जिसे अपनी प्रतिभा के अनुसार उसे हासिल करना ही चाहिये था, उसका मलाल अवश्य हो रहा होगा. भारतीय टीम से खेलना उसकी नियति थी, पर इस नियति से साक्षात्कार करने में उसे 10 साल लग गये. फिर भी, ये एक नई शुरुआत तो है ही. और अभी उसकी उम्र 28 भी नहीं हुई है, 'मिस्टर क्रिकेट' कहे जाने वाले माइक हसी को पहला मौका 29 साल की उम्र में मिला था. आल द बेस्ट अम्बाती रायुडू.