उसे मैदान में न सिर्फ गेंद को अपने काबू में रखना आता था, बल्कि प्रतिद्वंदी खिलाड़ियों को छकाते हुए बिजली की तेज़ी से आगे बढना भी आता था, बस इसी क्षमता पर मेहनत करनी शुरू कर दी. एक दिन केरल पुलिस के तत्कालीन डीजीपी एम. के. जोसफ की नज़र प्रैक्टिस करते इस युवक पर पड़ी और उनकी अनुभवी नज़रों ने पलक झपकते भाँप लिया कि इस युवक में अद्वितीय क्षमता है. जोसफ के अनुरोध पर केरल पुलिस की टीम में उस युवक को शामिल किया गया, वर्ष था 1987 का. और तब से उस युवक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
आने वाले वर्षों में वही युवक अपने समय का भारत का सबसे सफल फुटबॉल खिलाड़ी बना. "कालो हरिन" के नाम से विख्यात भारतीय फुटबाल टीम के पूर्व कप्तान आई. एम. विजयन ने भारत के लिए पहला मैच 1989 में खेला था और जब 2003 में उन्होंने एफ्रो -एशियाई खेलों में सर्वाधिक गोल (4) दागकर भारतीय टीम को रजत पदक दिलाया तो अपने श्रेष्ठ फॉर्म में रहते हुए उन्होंने संन्यास ले लिया. भारतीय फुटबॉल के पोस्टर ब्वाय बाईचुंग भूटिया के साथ मिलकर विजयन ने भारतीय आक्रमण को पुनः परिभाषित किया और भारतीय फुटबॉल को नयी ऊँचाई पर पहुँचाया. आज भारतीय फुटबॉल फीफा रैंकिंग में 150 के आसपास है, वो विजयन के प्रभुत्व के दिनों में 100 - 110 के आसपास रहा करती थी.
अपने खेल जीवन के शिखर के दिनों में विजयन की प्रसिद्धि का आलम ये था कि मलेशिया और थाईलैंड सरीखे दक्षिण - पूर्वी एशियाई देशों के प्रतिष्ठित क्लब के ऑफर उनके पास हमेशा आते रहते थे, पर उन्होंने हमेशा भारत के क्लब को ही प्रार्थमिकता दी. अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर में विजयन ने भारत के लिए कुल 40 गोल किये जो अपने समय का रिकॉर्ड था और जिसे आजतक सिर्फ बाईचुंग भूटिया ही बेहतर कर सके हैं. विजयन के नाम किसी अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल में तीसरा सबसे तेज़ गोल दागने का रिकॉर्ड भी है, जब 1999 के सैफ कप में भूटान के खिलाफ मात्र 12 सेकंड में उन्होंने फुटबॉल प्रतिपक्षी टीम के नेट में डाल दी थी.
कौन कहता है परीकथाएँ सिर्फ भारतीय क्रिकेट तक हीं सीमित हैं?